भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त : जिन्हे आजाद भारत में ना नौकरी मिली न सम्मान

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शहीदे आजम भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में कभी वो सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।

असेंबली बम कांड में भगत सिंह के साथ चलते हुए विधानसभा सत्र में बम फोड़ने और पर्चे उड़ाने के जुर्म में कालापानी और अंग्रेजो की दूसरी सजाओं को काटकर यह क्रांतिकार जब आजाद हुआ तो आजादी के जश्न में डूबे इस देश को उसकी ओर देखने की फुरसत ही नही थी।

अंडमान की सेलुलर जेल से अंग्रेज उन्हे 1937 में बिहार की पटना स्थिति जेल ले आए क्योंकि वहां घटिया खाने और अमानवीय यातनाओं के खिलाफ कामयाब भूख हड़ताल करके उन्होंने अंग्रेजों को जगाने के लिए मजबूर कर दिया था।

पटना जेल से वे 1938 में रिहा हुए और फिर  1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हुए जिसमे फिर जेल गए।

आजादी के बाद दत्त की सजा माफ कर दी गई पर कठोर सज़ाओ से वे गंभीर रूप से बीमार पड़ चुके थे।

दत्त को आज़ाद भारत में न नौकरी मिली न बीमार होने पर ढंग का ईलाज।

हद तो तब हो गई जब आजाद भारत में उन्होंने पटना में एक बस चलाकर जीवन यापन की सोची और बस का परमिट लेने की कमिश्नर से मिले तो उनसे बटुकेश्वर दत्त होने का प्रमाण मांगा गया।

बटुकेश्वर उस मिट्टी के बने ही नही थे जो पेंशन के लिए अंग्रेजों से माफी मांगे या नए नौकरशाहों के सामने सिर झुकाते।

सो उन्होंने ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए पटना के सड़कों पर सिगरेट की डीलरशिप की तो कभी बिस्कुट और डबलरोटी बेची।

बाद के दिनो मे तो उन्होंनेमामूली टूरिस्ट गाइड बनकर गुज़र-बसर किया, वो तो बटुकेश्वर दत्त की पत्नी मिडिल स्कूल में नौकरी करती थीं जिससे उनका गुज़ारा हो पाया।

1964 में अचानक बीमार होने पर उन्हें पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां ढंग से इलाज न होने पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने तीखा लेख लिखकर कहा कि दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना ही नही चाहिए था।

इस लेख के बाद पंजाब सरकार ने अपने खर्चे पर दत्त का इलाज़ करवाने का प्रस्ताव दिया और तब बिहार सरकार भी चेती।

22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया और एम्स में भर्ती किया गया तो पता चला कि उन्हें कैंसर है और जिंदगी के चंद दिन ही बचे हैं।

यह खबर सुन भगत सिंह की मां विद्यावती भी उनसे मिलने दिल्ली आईं। 

पंजाब के us समय के मुख्यमंत्री रामकिशन ने जब दत्त से कहा कि हम आपको कुछ देना चाहते हैं, तो फीकी मुस्कान के साथदत्त ने कहा कि मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त इस दुनिया से विदा हो गये और उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया।

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