बेघर होने जा रहे राहुल गांधी और उनके पूर्वजों ने क्यों नहीं बनवाया अपना घर ?

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Pranam India

बड़ी अजीब बात लगती है कि मामूली कमाई करने वाला परिवार भी अपने बच्चों के लिए भले ही छोटा हो पर एक घर बनवाने की कोशिश तो करता ही है पर पिछली चार पीढ़ियों से देश का नेतृत्व करने में अग्रणी रहा नेहरू गांधी परिवार ने कभी अपना घर बनवाने की बात सोची ही नहीं।

शायद यही वजह है कि सांसदी जाने के बाद अगर लोकसभा सचिवालय उनसे उनका दिल्ली का मौजूदा घर छीन लेता है तो उनके पास अपने नाम का कोई घर नहीं रहेगा क्योंकि उनके पुरखों ने अपना घर बनवाना तो दूर अपने अरबों की कीमत वाले दोनो घर देश को समर्पित कर दिया था।

जो था वो देश को से दिया बिना कोई मुआवजा लिए और नया घर किसी ने भी बनवाया ही नहीं तो आज अगली पीढ़ियां तो दर बदर होंगी ही।

अगर राहुल के पूर्वजों का इतिहास खंगाला जाए तो कश्मीर के कौल खानदान के दिल्ली आकर बसने और नेहरू नाम स्वीकार करने के समय पंडित राजनारायण कौल को चांदनी चौक में बादशाह की ओर से कुछ गांव और एक हवेली दी गई थी।

1857 की क्रांति के समय इन्ही राजनारायण कौल के पोते गंगाधर अंग्रेजी राज में दिल्ली के कोतवाल थे और अंग्रेजों के जुल्म से बचने के लिए ये आगरा आ गए जहां राहुल गांधी के परनाना मोती लाल का जन्म हुआ।

1883 में मोतीलाल ने कैंब्रिज से वकालत की डिग्री हासिल की और वकालत का उस समय का सबसे प्रतिष्ठित लंब्सडन मेडल भी जीता और अब के प्रयागराज यानी इलाहाबाद में वकालत शुरू की और जल्दी ही देश के सबसे मंहगे वकीलों में उनकी गिनती की जाने लगी।

30 साल की उम्र पहुंचने में मोतीलाल नेहरू अपनी वकालत से महीने के करीब दो हजार रुपये कमाते थे जबकि उस जमाने में स्कूल के एक टीचर को 10 रुपये महीने की पगार मिला करती थी।

1900 में जवाहर लाल नेहरू की उम्र जब 11 साल की थी तब करीब 19 हजार रुपये में मोतीलाल नेहरू ने 1 चर्च रोड पर बहुत बड़ा आलीशान मकान खरीदा जिसमे लॉन, फलों के बागीचे थे और स्विमिंग पूल तक था।

मोतीलाल नेहरू ने यूरोप और चीन से फर्नीचर और घर के दूसरे साजो-सामान मनवाए और उनका घर इलाहाबाद में अकेला ऐसा घर था जहां शौचालय में फ़्लैश सिस्टम लगा था।

इस घर का नाम आनंद भवन रखा गया था पर करीब 30 साल बाद 1930 में मोतीलाल नेहरू ने जब एक और घर बनवा लिया तो उसका नाम आन्नदभवन और पुराने घर का नाम बदलकर स्वराज भवन कर दिया गया।

मोतीलाल नेहरू ने ही अपने पुराने घर को देश को समर्पित कर दिया।

घर को बनवाने के अगले ही साल 1931 में मोतीलाल नेहरू की मौत हो गई पर नया आनंद भवन भी नेहरू परिवार के घर से ज्यादा कांग्रेस का मुख्यालय बन गया जहां ऊपर नेहरू परिवार रहता था और नीचे पार्टी का कामकाज चलता था।

15 अगस्त 1947 तक ये आनंद भवन नेहरू परिवार का घर और कांग्रेस का दफ्तर दोनों ही बना रहा।

आजादी के बाद कांग्रेस का दफ्तर इलाहाबाद से दिल्ली आ गया तो प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली का सरकारी आवास तीन मूर्ति भवन जवाहर लाल नेहरू का घर हो गया जिसे उनके निधन के बाद उनके स्मारक में तब्दील कर दिया गया।

नेहरु के बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तो 1969 में उन्होंने इलाहाबाद वाले आनंद भवन को देश को समर्पित कर दिया।

स्वराज भवन और आनंद भवन दोनो ही मोतीलाल नेहरू के खरीदे थे और इसके बाद जवाहर लाल नेहरू या उनके वारिसों ने अपने या परिवार के लिए कोई घर नहीं खरीदा।


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