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वानप्रस्थ की उम्र वाले नेताओं से भाजपा का मोहभंग
वानप्रस्थ यानि 75 साल की उम्र पार कर चुके नेताओं का भले ही सियासत से मोहभंग न हुआ हो पर भाजपा का अपने ऐसे नेताओं से मोहभंग हो चुका है और वो चाहती है कि या तो ऐसे नेता खामोशी से घर बैठे या फिर बुजुर्ग की तरह पार्टी के किसी कोने में पड़े रहें.
वैसे ऐसे तमाम नेताओं को कई बार कई तरह से साफ संदेश दिया जा चुका है कि इस बार वो अपनी जगह अपने से कम उम्र के अनुभवी नेताओं के लिए खाली करें और खुद संसद की शोभा बनने की बजाए दूसरों को वहां तक पहुंचाने में मदद करें ताकि भाजपा लम्बी राजनीति के लिए तैयार हो सके.
इस समय भाजपा में दो स्थापित बुजुर्ग लाल कृण्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी हैं जिन पर सबकी नजर है कि वो खुद सक्रिय राजनीति से सन्यास लेते हैं या अभी सियासत से उनका मोह कायम रहता है.
इनके अलावा उत्तराखंड के बीसी खंडूरी, मौजूदा लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, कलराज मिश्रा, नजमा हेपतुल्ला जैसे तमाम नेता हैं जो 75 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं और पार्टी ने ऐसे सभी नेताओ को साफ कर दिया है कि चुनाव लड़ने के बाद जीतकर आने पर भी उन्हें मंत्रि पद या किसी अन्य पद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
लेकिन यह भी साफ है कि पार्टी समझती है कि मध्यप्रदेश के बाबू लाल गौर जैसे कई दूसरे नेता भी है जिनके गले से ये नसीहत उतरने वाली नहीं है और जो अपना टिकट कटने पर दूसरी पार्टी से टिकट लेकर भी मैदान में उतर सकते हैं.
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर को खामोश करने के लिए पहले भाजपा ने उनकी बहू को टिकट दिया पर इस बार वो पार्टी नेतृत्व तक ये संदेश पहुंचा चुके हैं कि अगर उनका टिकट फिर काटा गया तो कांग्रेस की तरफ से उनका टिकट पक्का है.
ऐसी हालत में अपने बुजुर्ग नेताओं की इस मजबूत टीम का भाजपा क्या करे ये जरुर पार्टी के मौजूदा नेतृत्व की चिन्ता है जो अपने सांसदों की औसत उम्र को 45 से 50 के बीच ही रखना चाहती है.