बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार मामले में जेल से जल्दी छोड़े गए 11 लोगों में से एक ने बाकायदा गुजरात में प्रैक्टिस भी शुरू कर दी है जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐतराज जताया है।
इस मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए 11 अपराधियों को गुजरात सरकार ने पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था इनमें से एक ने अब गुजरात में बार एसोसिएशन की सदस्यता लेकर बाकायदा अदालत में प्रैक्टिस भी शुरू कर दी है
इस मामले को आज सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया तो कोर्ट ने भी यह टिप्पणी की की वकालत का पेशा सम्मानजनक है और किसी बलात्कारी को कोई भी बार अपना सदस्य कैसे बना सकता है जिस पर गुजरात सरकार के वकील ने तर्क दिया कि इस मुलजिम को भी सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश पर गुजरात सरकार ने छोड़ा है और किसी भी सजा का मकसद व्यक्ति में सुधार करना होता है इसलिए एक बार सजा काट लेने के बाद उसे सारे अधिकार वापस जाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
बिलकिस बानो केस के दोषी राधेश्याम की तरफ से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने जजों को बताया कि उनका मुवक्किल अपने जेल में अच्छे चाल-चलन के आधार पर रिहा हुआ है. उसने 14 साल से अधिक समय जेल में बिताया है. अब वह निचली अदालत में वकील बन गया है. वह मोटर दुर्घटना क्लेम के मामलों में वकालत करता है।
इस पर जस्टिस भुइयां और जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि रिहाई प्रशासनिक मामला है पर इससे किसी का दोष खत्म नहीं होता और उसकी रिहाई को तो कभी भी चुनौती दी जा सकती है।
इन लोगों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो के अलावा सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा और टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।