संपूर्ण विपक्ष यह जानते हुए भी कि लोकसभा में उसके पास संख्या बल नहीं है मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है जिसका वोटिंग के बाद गिर जाना उतना ही तो है जितना मोदी सरकार का सत्ता में बना रहना।
लेकिन फिर भी मणिपुर की घटना को लेकर विपक्षी गठबंधन मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव इसलिए राई है क्योंकि सदन में बयान देने के लिए तैयार न होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद इसका जवाब सदन में देना ही पड़ेगा यानी मणिपुर पर लोकसभा में प्रधानमंत्री से जवाब मांगने के लिए इस प्रस्ताव को हथियार के तौर पर विपक्ष ने आजमाया है।
वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने पूरे कार्यकाल के दौरान 15 बार ऐसे अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर चुकी थी एक बार भी हारी नहीं थी।
दरअसल देश में जिस तरह की संसदीय व्यवस्था है उसमें सदन में हारने जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण वहां मुद्दों को उठाना माना जाता है इसीलिए कोई भी सांसद 50 अन्य साथियों के साथ मिलकर अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है और एक बार अगर लोकसभा अध्यक्ष उसे स्वीकार कर लेता है तो 10 दिन के भीतर ही उस पर बहस भी करानी होती है और बहस के बाद वोटिंग होती है जिसमें सरकार बचे या गिरे।
यह भी अजीब बात है 2019 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक संसद में कुल 5 बार बोले हैं जिसमें एक बार तो राम जन्मभूमि प्राधिकरण के गठन पर और एक बार नए लोकसभा अध्यक्ष के पद संभालने के समय
यानी इन दोनों को हटा दिया जाए मोदी जी संसद में चार सालों में कुल 3 बार और बोले हैं।