देश में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है फिर भी अगले आम चुनावों से पहले मोदी सरकार की समान नागरिक संहिता लागू करने की किट यह साबित करती है यह चुनावों में भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है।
यही वजह है राष्ट्रीय स्तर पर भले ही समान नागरिक संहिता को लेकर कोई फैसला ना हुआ हो लेकिन उत्तराखंड , हिमाचल और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार इसे लेकर इतनी उत्साहित हैं क्यों उन्होंने अपने राज्य में इसे लागू करने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
यह भी सही है किस समान नागरिक संहिता को लेकर न सिर्फ आजादी के बाद देश का कानून बनाने वाली संविधान सभा में लंबी बहस हुई थी बल्कि नेहरू और अंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे लेकिन इसके खतरों को देखते हुए उस समय इसे लागू करना टाल दिया गया था ।
यही नहीं यही वह मुद्दा था जिसकी वजह से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने नेहरू मंत्रिमंडल से बतौर कानून मंत्री इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उस समय चुनावों के नजरिए से नेहरू ने अंबेडकर द्वारा पेश किए गए कोर्ट बिल को जस का तस बहस के बाद भी लागू करने से डाल दिया था।
देश में रहने वाले सभी लोगों के लिए एक कानून का विक्रम तो उस समय भी हुआ था जब आजादी के 100 साल पहले देश में अंग्रेजों का शासन काल लेकिन उन्होंने भी इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए इस तरह का कोई कानून नहीं बनाया लेकिन सबके लिए 1860 में भारतीय दंड संहिता को जरूर अमलीजामा पहना दिया गया जो आज भी लागू है।
इसके बाद समान नागरिक संहिता पर जोरदार बहस संविधान सभा में हुई जहां जवाहरलाल नेहरू , डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, के एम मुंशी ,मीनू मसानी जैसे नेता इसे लागू करने के पक्ष में थे जबकि कई बड़े नेता इसके मुखर विरोधी थे ।
लंबी बहस द्वार इसी वजह से समान नागरिक संहिता को संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल में तो रख दिया गया लेकिन इस पर कानून नहीं बनाया गया ।
इसके बाद समान नागरिक संहिता शब्द का पहली बार चुनावी इस्तेमाल 1967 में जनसंघ ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया और जब भाजपा बनी थी यह उसके चुनावी घोषणा पत्र में आ गया।
इस समय मोदी सरकार जिन तीन बड़े मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरी थी उनमें से राम मंदिर कश्मीर में धारा 370 समाप्त करना पूरा हो चुका है और अब इकलौता मुद्दा समान नागरिक संहिता क्या है जिसे अगले चुनावों से पहले लागू करके वह हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ना चाहती है।