संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में और सुरक्षा परिषद की बैठक में रूस के खिलाफ मतदान ना करने को गंभीरता से लेते हुए अमेरिका अब मानने लगा है कि भारत भी कहीं ना कहीं चीन, पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात की तरह रूस और पुतिन के पाले में जा खड़ा हुआ है।
इस स्थिति को पलटने के लिए अमेरिकी विदेश विभाग ने एक तार यानि आपात निर्देश अपने सभी देशों में स्थित दूतावासों को भेजकर अपने प्रतिनिधि अफसरों को भारत के समकक्ष अफसरों से बात करके भारत को रूस के खिलाफ और यूक्रेन की संप्रभुता बनाए रखने के लिए मतदान करने किए प्रेरित करने को कहा था।
सोमवार को जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय के ये निर्देश अगले दिन ही यानि मंगलवार को ही वापस लिए गए पर वर्ल्ड मीडिया अब भी इन पर चर्चा कर रहा है।
यह सही है कि भारत और रूस की दोस्ती एक समय में इतनी मजबूत थी कि तब के यूएसएसआर ने यहां तक ऐलान कर रखा था कि भारत पर होने वाला कोई भी हमला वह अपने खिलाफ मानेगा और यही वजह है कि बांग्लादेश के गठन के समय अमेरिकी दबाव में जब यूरोप भारतीय कार्रवाई को पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय ज्यादती मान रहा था तब रूस खुलकर भारत के साथ खड़ा था।
लेकिन भारत में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद भारत ने रूस की बजाए अमेरिका से ज्यादा नजदीकियां दिखाई और दो अमरीकी राष्ट्रपतियों को पांच साल में दो बार देश में बुलाया और घुमाया गया।
वैसे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि यूक्रेन ।ए फंसे छात्रों को निकालने में रूस की मदद लेने के लिए भारत ने अभी तक अंतराष्ट्रीय मंच पर रूस की खुलकर मुखालफत नही की है पर यह भी सच है कि भारत के रुख में आए इस बदलाव को लेकर अमेरिका और रूस दोनों काफी सतर्क हैं।