दशहरे पर इस बार भी मैसूर रावण का पुतला नहीं फूंकेगा और इसकी जगह वो दैत्य सम्राट महिषासुर के पुतले को आग के हवाले करेगा।
मैसूर शहर से राक्षस महिषासुर का बहुत करीबी रिश्ता है और वो यहां का राजा था पर इतना क्रूर था कि प्रजा उससे तंग रहती थी.
लेकिन वह शिव का इतना बड़ा भक्त था कि उसने उनसे यह वर हासिल कर लिया था कि कोई भी देवता या पुरुष उसकी हत्या नहीं कर सकता ।
उसके आतंक से परेशान लोग भगवान शिव की शरण में गए तो अपने ही वरदान को काटने के लिए शिव ने यह युक्ति निकाली कि कई देवताओं की ताक़त लेकर पार्वती दुर्गा के रूप में जाएं और महिषासुर का मर्दन करें।
दस दिनों तक महिषासुर के साथ मां दुर्गा का युद्ध शहर की सबसे ऊंची पहाड़ी चामुंडा पर चलता रहा।
इसीलिए देवी को चामुंडेश्वरी देवी भी कहा गया और दसवें दिन महिषासुर का वध चामुंडेश्वरी देवी ने कर दिया. तब से यहां इस दिन को दशहरे के तौर पर मनाया जाने लगा।
इस बार इस दशहरे की पचासवीं वर्षगांठ है और इसे कांग्रेस शासन मे फिर से शुरू किया गया था इसलिए इसे लेकर राजनीति भी शुरू हो चुकी है और भाजपा इसे भारतीय परंपराओं से खिलवाड बात रही है।