हाल ही में आई एक चिकित्सीय रिपोर्ट ने यह कहकर दुनियाभर में नई बहस छेड़ दी है कि जिस स्मार्ट फोन को बच्चों के हाथों में थमाकर मां-बाप ये सोचते हैं उनका बच्चा यू ट्यूब और इंटरनेट से जुड़कर ज्यादा स्मार्ट बनेगा वो पूरी तरह गलत हैं क्योंकि ये फोन बच्चों को बड़े होने पर मानसिक बीमारियों का शिकार बना देते हैं।
इस एक रिपोर्ट ने दुनियाभर में यह बहस छेड़ दी है कि बच्चों को स्मार्ट देना भी चाहिए या नहीं और कितनी देर के लिए क्योंकि करोना काल में आनलाइन क्लासों के बहाने हमने भी छोटे छोटे बच्चों में फोन और इंटरनेट का चस्का तो लगा ही दिया है।
एक अमेरिकी ग़ैर-सरकारी संस्था ‘सेपियन लैब्स’ ने दुनिया के 40 देशों के 2,76,969 युवाओं से जनवरी से अप्रैल महीने तक बातचीत करके एक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की है जिसमें दावा किया गया है कि स्मार्ट फोन भी उन लोगों का मानसिक विकास रोकने की एक वजह है जो बचपन में इसके लती बन गए थे।
बड़ी बात यह भी है जिन देशों में ये सर्वेक्षण किया गया है उनमें भारत भी शामिल है और ये रिपोर्ट यह भी बताती है कि महिलाओं और पुरुषों में स्मार्ट फोन की वजह से बड़े होने पर पनपने वाली समस्याएं थोड़ा अलग अलग होती हैं पर लड़कियां इससे ज्यादा प्रभावित होती और इसलिए कि लड़कों की तुलना में लड़कियों में किशोरावस्था पहले आती है और उनमें मानसिक और शारीरिक बदलाव अपेक्षाकृत जल्दी होते हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है जिन बच्चों को कम उम्र में स्मार्टफ़ोन दिए गए, उनमें आत्महत्या के विचार, दूसरों के प्रति ग़ुस्सा, सच्चाई से दूर रहना और कल्पना में जीने जैसी मानसिक अवस्थाएं विकसित हो जाती हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 74 फ़ीसदी महिलाएँ, जिन्हें 6 साल की उम्र में स्मार्टफ़ोन दिया गया था, उन्हें युवावस्था में मेंटल हेल्थ को लेकर परेशानी आई जबकि लड़कों में ये प्रतिशत साठ फीसदी तक है।