पांच हफ्तों बाद पहली अच्छी खबर आई है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच अब युद्ध की समाप्ति के समझौते को लेकर सीधी बातचीत हो सकती।
वैसे तो यह बातचीत जितनी जल्दी हो जाए और दोनों देशों के बीच चल रहा युद्ध जितनी जल्दी समाप्त हो जाए वही बेहतर है पर कोई माने या न माने इस युद्ध से सोवियत संघ के विघटन के बाद पहली बार रूस ने अपनी ताकत और क्षमता का अहसास बाकी दुनिया को कराया है।
प्रचार भले ही पर यह भी सच है कि रूस की सेनाएं भले तबाही यूक्रेन में मचा रही हों पर उनके निशाने पर नाटो संगठन और यूरोप अमेरिका की विस्तारवादी नीति थी जिसे छलनी करने में फौरी तौर पर पुतिन कामयाब दिख रहे हैं।
आज हुई बातचीत के बाद यूक्रेन का यह कहना कि वो नाटो में शामिल होने या अपने देश में किसी दूसरे देश को सैनिक अड्डा नहीं बनाने देगे पुतिन की बड़ी कामयाबी है।
इस वादे के साथ पोलैंड, कनाडा टर्की से सामरिक सुरक्षा की गारंटी चाहता है पर इस गारंटी के तहत यूक्रेन पर खतरा होने पर यूरोप से सैनिक दखल नहीं सिर्फ कूटनीतिक प्रयास शुरू करने की अपेक्षा है।
वैसे विदेश मंत्री स्तर की बातचीत के बाद दोनो देशों के राष्ट्रपति जब मिलेंगे तब शायद ही रूस इस शर्त को पूरा का पूरा मानने को तैयार हो सके क्योंकि यह संदेश भी साफ है कि इतने बड़े खतरे के समय भी यूरोप के देश यूक्रेन की वो मदद नहीं कर सके जैसा वो चाहता था।
बहरहाल रूस ने यह साफ कर दिया है कि हमलों में कमी का मतलब युद्ध विराम कतई न समझा जाए।
यह साफ है कि अब यूक्रेन के कुछ हिस्सों में रूस के प्रति आकर्षण भी बढ़ेगा और दिनों देशों के रिश्तों भी बदलेंगे तो क्या यह पुराने सोवियत संघ जैसी कोई व्यवस्था बहाल करने की कोशिश तो नहीं है।